09 नवंबर 2011

 
हर पल आहत होती है नदी 
पल पल जहर पीकर 
मानव को तो दर्द नहीं है पर
नदी को तो दर्द होता है 
गन्दला विषैला जल 
ठीक मां की तरह 
जो पिलाती है बच्चे को दूध 
पूरा ममत्व  लुटाकर 
कैसे  पिलादे वह पूतना का दूध? 
नदी का तो स्वभाव है 
पावन निर्मल जल देना
अब वह जाये तो जाये कैसे
विषकन्या बन 
अपने ही सागर से मिलने ?

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