हर पल आहत होती है नदी
पल पल जहर पीकर
मानव को तो दर्द नहीं है पर
नदी को तो दर्द होता है
गन्दला विषैला जल
ठीक मां की तरह
जो पिलाती है बच्चे को दूध
पूरा ममत्व लुटाकर
कैसे पिलादे वह पूतना का दूध?
नदी का तो स्वभाव है
पावन निर्मल जल देना
अब वह जाये तो जाये कैसे
विषकन्या बन
अपने ही सागर से मिलने ?
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