Science Fiction Planet
09 नवंबर 2011
नदी की व्यथा
न जाने नदी को क्या हुआ ?
क्यों बह रही है उदास उदास
मैंने सटाया उसकी कल कल से कान
तो जाना कलकल की ओट से
बह रही है नदी बोझिल मन से
अब नहीं चाह होती है उसकी
मिलने की नीले सागर से
1 टिप्पणी:
बेनामी
09 नवंबर, 2011
bahut achchi kavita hai.Manjushri
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